Tuesday, July 1, 2008

मौत की चिंता क्यों?

मृत्यु क्या है?
सांसों का रुकना
दिल का थमना
या फिर
दिमाग का शून्य होना
आखिर मृत्यु क्या है?
कभी कभी
ये सवाल जेहन में उठता है
अचानक बहुत अचानक
मस्तिष्क की दीवारों से टकरा कर
कौंधता है
तेज बहुत तेज
लगता है नसें फट जाएंगी
जिस्म सुन्न पड़ जाएगा
किसी भी वक़्त
कलेजा मुंह से बाहर आ जाएगा
सांस थम जाएगी
धड़कन बंद हो जाएगी
और मैं मर जाऊंगा
लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता है
चंद पलों के भीतर
सबकुछ सामान्य हो जाता है
पहले की तरह शांत ...
फिर भीतर से
धीमी
दबी कुचली
निस्तेज
निस्प्राण
एक ही आवाज़ आती है
मृत्यु चेतना शून्य होना है
सच और गलत का भेद भूल कर
भौतिक सुखों में लिप्त होना है
और
तुम काफी पहले मर चुके हो
फिर तुम्हें मौत की चिंता क्यों?

2 comments:

Vinay said...

श्रेष्ठ भाव!

Advocate Rashmi saurana said...

bhut sundar bhav se sundar rachana. likhate rhe.