Friday, July 25, 2008

शब्दों का सफ़र

शब्द भी सफ़र पर हैं
अंतहीन सफ़र पर
थकते हैं
बीच राह में
सुस्ताते हैं
बतियाते हैं
रुकना मना है
रुके तो एक झटके में
सब ख़त्म.

वो हौसला जुटाते हैं
आगे बढ़ जाते हैं
अपनी नियति
अपनी मंजिल की ओर.

ये सफ़र बेहद लंबा है
थकान भरा
उबाऊ भी
कहीं खाई
कहीं पर्वत
कहीं नदी
कहीं दलदल
कहीं रेगिस्तान
आंधियां भी कम नहीं
तूफ़ान बहुतेरे हैं
फिर भी उम्मीद की डोर थामे
बढ़ते जाना है.
उम्मीद कि कोई लेखक
उन्हें उठाएगा
झाड़ पोंछ
धागे में पिरो
ज़िंदगी में
रोमांच भर देगा
नए मायने दे देगा.

सफ़र में कुछ शब्द
गुम हो जाते हैं
लोग उन्हें दुत्कार देते हैं
जैसे लावारिस अनाथ बच्चा
जैसे गली का कोई कुत्ता
नहीं, वो भी नहीं
जैसे कोई टिशू पेपर
इस्तेमाल के बाद
फेंक दिया जाता है
डस्टबीन में.

ज़्यादती वहां भी है
ज़ुल्म वहां भी है
धोखा भी कम नहीं
कुछ अच्छे शब्द
बदनाम किये जाते हैं
तरसते रहते हैं
इंतज़ार करते हैं
कभी, तो कोई
सम्मान देगा
लेकिन कुछ नीच शब्द
सम्मान पा जाते हैं

दलाल को ही लीजिये
बीते जमाने की ये गाली
आज सम्मानित है
बिन दलाल काम नहीं चलता
कहीं झोपड़ी डालनी हो
मकान खरीदना हो
कंपनियों का सौदा हो
हथियारों का
जिस्म का
ईमान का
कोई भी सौदा हो
दलाल हर जगह हाजिर है
लहू में घुले नमक की तरह

हमने दलाल की महिमा देखी है
एक-दो बार नहीं कई बार
ये चाहे तो रंक को राजा बना दें
और राजा को रंक

आज शहर में
दलाल स्ट्रीट है
कल दलाल राज्य होगा
परसों दलाल देश

4 comments:

vipinkizindagi said...

achchi rachna hai

Advocate Rashmi saurana said...

sundar rachana ke liye badhai.

Udan Tashtari said...

आज शहर में
दलाल स्ट्रीट है
कल दलाल राज्य होगा
परसों दलाल देश

-एक ईमानदार रचना..बहुत खूब!!बधाई.

Prabhakar Pandey said...

अच्छी और सटीक रचना।