शब्द भी सफ़र पर हैं
अंतहीन सफ़र पर
थकते हैं
बीच राह में
सुस्ताते हैं
बतियाते हैं
रुकना मना है
रुके तो एक झटके में
सब ख़त्म.
वो हौसला जुटाते हैं
आगे बढ़ जाते हैं
अपनी नियति
अपनी मंजिल की ओर.
ये सफ़र बेहद लंबा है
थकान भरा
उबाऊ भी
कहीं खाई
कहीं पर्वत
कहीं नदी
कहीं दलदल
कहीं रेगिस्तान
आंधियां भी कम नहीं
तूफ़ान बहुतेरे हैं
फिर भी उम्मीद की डोर थामे
बढ़ते जाना है.
उम्मीद कि कोई लेखक
उन्हें उठाएगा
झाड़ पोंछ
धागे में पिरो
ज़िंदगी में
रोमांच भर देगा
नए मायने दे देगा.
सफ़र में कुछ शब्द
गुम हो जाते हैं
लोग उन्हें दुत्कार देते हैं
जैसे लावारिस अनाथ बच्चा
जैसे गली का कोई कुत्ता
नहीं, वो भी नहीं
जैसे कोई टिशू पेपर
इस्तेमाल के बाद
फेंक दिया जाता है
डस्टबीन में.
ज़्यादती वहां भी है
ज़ुल्म वहां भी है
धोखा भी कम नहीं
कुछ अच्छे शब्द
बदनाम किये जाते हैं
तरसते रहते हैं
इंतज़ार करते हैं
कभी, तो कोई
सम्मान देगा
लेकिन कुछ नीच शब्द
सम्मान पा जाते हैं
दलाल को ही लीजिये
बीते जमाने की ये गाली
आज सम्मानित है
बिन दलाल काम नहीं चलता
कहीं झोपड़ी डालनी हो
मकान खरीदना हो
कंपनियों का सौदा हो
हथियारों का
जिस्म का
ईमान का
कोई भी सौदा हो
दलाल हर जगह हाजिर है
लहू में घुले नमक की तरह
हमने दलाल की महिमा देखी है
एक-दो बार नहीं कई बार
ये चाहे तो रंक को राजा बना दें
और राजा को रंक
आज शहर में
दलाल स्ट्रीट है
कल दलाल राज्य होगा
परसों दलाल देश
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14 years ago
4 comments:
achchi rachna hai
sundar rachana ke liye badhai.
आज शहर में
दलाल स्ट्रीट है
कल दलाल राज्य होगा
परसों दलाल देश
-एक ईमानदार रचना..बहुत खूब!!बधाई.
अच्छी और सटीक रचना।
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