(( कुछ चीजें आप हमेशा साथ रखते हैं. न चाहते हुए भी. हर बार मकान बदलते वक़्त लगता है कि उसे वहीं छोड़ दें, लेकिन ना जाने क्यों फिर आप उसे उठा कर ट्रक में लाद देते हैं और नए मकान में ले जाते हैं. ऐसा मेरे साथ भी खूब होता है. बहुत सी चीजें घर में पड़ी हैं जिनकी अब कोई आवश्यकता नहीं. लेकिन मैं उन्हें फेंक भी नहीं पाता. ऐसी ही एक मेज है... लकड़ी की, जो हाथ रखने पर एक और झुक जाती है. लेकिन मुझे उस मेज से मोह है या कहें कि इश्क कि वो मेज मैं फेंक नहीं पाता. उसी को समर्पित ये चंद लाइनें. शायद आपको पसंद आएं. अगर पसंद ना आएं तो जाहिर जरूर करियेगा.)) ...
मेरे ड्राइंग रूम के कोने में वो मेज पड़ी है
मखमल में टाट के पैबंद की तरह
एक वक़्त था जब इसके सिवाय
मेरे पर कुछ खास नहीं था
बस थी एक चटाई
और एक स्टोव
और कुछ बर्तन
चटाई तो कब की खर्च हो गई
और मुझे याद है
एक बार तनख़्वाह देर से मिली
पैसे की सख़्त जरूरत थी
तो रद्दी के साथ स्टोव भी बिक गई
बर्तन नए बर्तनों में खप गए
गाहे-बगाहे आज भी वो मेरे हाथ आते हैं
मगर इस मेज जैसे खटकते नहीं
ड्राइंग रूम के कोने में पड़ी ये जर्जर मेज
याद दिलाती है मुझे मेरी उम्र
हर पल बताती है कि
ज़िंदगी का आखिरी पड़ाव है
इससे ज्यादा मोह ठीक नहीं
मैंने झुंझलाहट में कई बार
मेज से पीछा छुड़ाने की कोशिश की
लेकिन हर बार जैसे वो जिंदा हो जाती
कहती अभी तुम खुशहाल हो तो
इस खुशहाली में मेरा हिस्सा है
मैं तुमसे वो हिस्सा नहीं मांग रही
बस मुझे साथ रहने दो
देखो दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है
यहां किसी की कोई गारंटी नहीं
जिन बच्चों पर तुम्हें नाज है
हो सकता है वो भी साथ छोड़ दें
मगर मैंने हमेशा तुम्हारा साथ दिया है
आड़े वक़्त में एक फिर आजमाने के लिए ही सही
मुझे साथ रहने दो.
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14 years ago
5 comments:
बहुत सुंदर रचना. दिल को छू गई.
बहुत बेहतरीन!
देखो दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है
यहां किसी की कोई गारंटी नहीं
जिन बच्चों पर तुम्हें नाज है
हो सकता है वो भी साथ छोड़ दें
भाव अच्छा है लेकिन कविता सशक्त नही है.... वो टीवी की भाषा में कहू तो स्क्रिप्ट में जान नही है सब्जेक्ट अच्छा है
राजेश जी, पहली टिप्पणी ऐसी मिली है जिसने हकीकत बयां की है. मैं जानता हूं कि मुझसे कविता के लिहाज से स्क्रिप्ट मजबूत नहीं बन रही, लेकिन मैं उसे मजबूत बनाना चाहता हूं. थोड़ा मार्गदर्शन और करें. किसी एक पैरा को लेकर उसे नए सिरे से लिख कर बताएं कि स्क्रिप्ट कैसे मजबूत की जा सकती है. ऐसा करने में आपको थोड़ा कष्ट जरूर हो सकता है, मगर मेरी बहुत मदद होगी.
शुक्रिया
समर
बहुत उम्दा भाव हैं दिल की गहराई में उतर जाने वाले.आपने राजेश भाई की बात पर गौर किया, बहुत अच्छा लगा.
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