Wednesday, July 16, 2008

चलती फिरती कब्र सा

(( बचपन में पढ़ते थे those who dream the most do the most. थोड़ा बड़े हुए तो पता चला कि सिर्फ सपने देखने से काम नहीं चलता उन्हें पूरा करने के लिए जोखिम भी उठना पड़ता है. वक़्त के विपरीत चलना पड़ता है. मैं ऐसा नहीं कर सका. मेरे सपने ... एक के बाद एक, दम तोड़ते गए. वो आज भी सोते जागते मेरे सामने आ जाते हैं.. मुझसे कहते हैं कि मैंने उनसे विश्वासघात किया है. मैं बेचैन हो उठता हूं और आज मेरे पास सपने नहीं, ऐसी ही बेचैनियां हैं.)) ....

पाश ने सच कहा था
बहुत ख़तरनाक होता है सपनों का मर जाना
मैंने भी इसे महसूस किया है
सपनों के मरने से ज्यादा ख़तरनाक कुछ नहीं
सपने मरते हैं तो
मरता है भीतर का इंसान आहिस्ता आहिस्ता
आज मेरे एक और सपने ने दम तोड़ा है
और मैं डोल रहा हूं
चलती फिरती कब्र की तरह.

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर अभिव्यक्ति है।