
जानवर हमला करते हैं
जब भूखे हों या फिर ख़तरे में
इंसान इन दोनों हालात में
हमला तो करता ही है
लेकिन उससे कहीं ज्यादा
बेशर्म तरीके से वार करता है
जब पेट भरा हो
इतिहास में झांक देखा है
इंसानी साज़िशों को
साज़िशें उन लोगों ने रचीं
जिनके पेट भरे थे
बीते समय के किसी महानायक को लीजिये
अशोक, अकबर, सिंकदर या नेपोलियन
बस चेहरे बदलते हैं
जगह, घटनाचक्र बदलता है
हक़ीक़त नहीं
इन्होंने जब युद्ध लड़े तब इनमें
कोई भूखा नहीं था, ना ही ख़तरे में
ये सभी दूसरों का लहू बहा
दुनिया जीतना चाहते थे
रियाया की देह चुनवा
महत्वाकांक्षाओं का महल सजाना चाहते थे.
इन ताकतवर लोगों को
इससे फर्क नहीं पड़ता कि युद्ध से
हजारों घर उजड़ते हैं
इससे भी नहीं कि
सिपाही एक बार मरता है
उसकी बेवा हर रोज मरती है
बच्चे बाप के लिए हर रोज तरसते हैं
ऐसा नहीं कि लोकतांत्रिक अवधारणाएं मजबूत हुईं
तो क्रूर इंसानी फितरत ख़त्म हो गई
मेरे दोस्त, सच यही है
युद्ध आज भी लड़े जाते हैं
पहले से कहीं ज्यादा विभत्स
कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर
साज़िशें आज भी रची जाती हैं
पहले से कहीं ज्यादा घिनौनी
यकीन न हो तो दुनिया के नक्शे को देखना
बीते सदी में दुनिया बहुत बदली है
हर कहीं मिट्टी रक्त से सनी है.
हमारे-आपके जैसे इंसान क्या
कई देश टूटकर बिखरे हैं
सिर्फ युद्ध ही नहीं
सम्पन्न लोगों की साज़िशें और भी हैं
आप चाहे किसी देश में हो
चाहे किसी शहर, किसी गली, किसी नुक्कड़ पर हों
साजिश के शिकार बन सकते हैं
कभी कभी तो लगता है कि
संसद, अदालत और संविधान
ताकतवर लोगों की सबसे बड़ी साज़िशें हैं
मैं इन्हें जीने को अभिशप्त हूं
मगरमच्छ के मजबूत जबड़े में फंसे
शिकार की तरह छटपटाता हूं
सांस घुटती है, दिल रोता है
कुछ ना कर पाने की लाचारी
निराशा को जन्म देती है
ज़िंदगी मुट्ठी में बंद रेत सी खिसकती जाती है
इसलिए मेरे दोस्त,
नाराज होने पर भी
कभी ये मत कहना कि
इंसान जानवर बन गया है
क्योंकि जानवर तब हमला नहीं करते
जब उनका पेट भरा हो
जबकि इंसान तब ज्यादा बेशर्म वार करता है
जब उसके पास सबकुछ हो.
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जानवर हमला करते हैं
जब भूखे हों या फिर ख़तरे में
इंसान इन दोनों हालात में
हमला तो करता ही है
लेकिन उससे कहीं ज्यादा
बेशर्म तरीके से वार करता है
जब पेट भरा हो।
इन चंद पंक्तियों में आपने सच्चाई सामने रख दी है। सुंदरतम एवं यथार्थ रचना। साधुवाद।
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