((खामोशी पर बहुत कुछ लिखा गया है. मैंने भी थोड़े थोड़े अंतराल पर कुछ लिखने की कोशिश की. अपनी एक कोशिश मैंने आप लोगों के सामने कल पेश की थी. दूसरी कोशिश आज पेश कर रहा हूं. सीखने का क्रम है इसलिए चाहता हूं कि आप इस पर अपनी राय दें. दिल खोल कर बताएं कि कहां चूक रह गई और कैसे इन्हें बेहतर बनाया जा सकता है. ))...
मैं खामोश हूं
क्योंकि मेरा हृदय विशाल है
मैं खामोश हूं
क्योंकि मैं सह सकता हूं
मैं खामोश हूं
क्योंकि मेरा चुप रहने का मन है
मैं खामोश हूं
क्योंकि मैं खामोशी की जुबां समझता हूं
मैं खामोश हूं
क्योंकि खामोशी मेरी ताकत है
मैं खामोश हूं
क्योंकि मुझे सही वक़्त का इंतज़ार है
तुम मेरी खामोशी को
बुजदिली मत समझना
एक दिन आएगा जब तुम्हारे जुल्म सहते-सहते
मैं फट पड़ूंगा
धरती की कोख में
सदियों से पल रहे ज्वालामुखी की तरह
तब मेरा धधकता लावा
सकुछ जला कर राख कर देगा
तुम्हारी सल्तनत, तुम्हारी सेना,
तुम्हारी संसद, तुम्हारी अदालत
यहां तक कि तुम्हारा वजूद भी मिटा देगा
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14 years ago
3 comments:
bahut jabardast udagaar hain.Sundar rachanaa hain.
bahut sashakt rachna...badhai.
Behatreen..Likhte raho. Badhai evam shubhkamnayen.
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