
ऐसे ख़त्म नहीं होगी दुश्मनी
चंद जगहों पर
चंद विधर्मियों के क़त्ल से
कायम नहीं होगा धर्मराज
मारना है तो सभी को मारना होगा
सिर्फ मेरे शहर में ही नहीं
बल्कि पूरे भारत में
सिर्फ भारत में ही नहीं
बल्कि पूरी दुनिया में
उन तमाम लोगों को
जो हिंदू नहीं हैं
उन लोगों को भी
जिनकी नस्ल अलग है
और आखिर में तुम्हारे सामने होंगे
मुझ जैसे लाखों करोड़ों लोग
जो भले ही तुम्हारे धर्म के हैं
लेकिन तुम्हारे विरुद्ध खड़े हैं
हाथों में तलवार और तमंचे लिये नहीं
बल्कि तुम्हारी करतूत पर
शर्म से सिर झुकाए
चंद जगहों पर
चंद विधर्मियों के क़त्ल से
कायम नहीं होगा धर्मराज
मारना है तो सभी को मारना होगा
सिर्फ मेरे शहर में ही नहीं
बल्कि पूरे भारत में
सिर्फ भारत में ही नहीं
बल्कि पूरी दुनिया में
उन तमाम लोगों को
जो हिंदू नहीं हैं
उन लोगों को भी
जिनकी नस्ल अलग है
और आखिर में तुम्हारे सामने होंगे
मुझ जैसे लाखों करोड़ों लोग
जो भले ही तुम्हारे धर्म के हैं
लेकिन तुम्हारे विरुद्ध खड़े हैं
हाथों में तलवार और तमंचे लिये नहीं
बल्कि तुम्हारी करतूत पर
शर्म से सिर झुकाए
तुम्हारी तलवार के वार से
क़त्ल होने के लिए.
क़त्ल होने के लिए.
3 comments:
bhut sundar. likhate rhe.
समर जी, इस कविता के लिए बधाई। एक सुझाव दे रहा हूँ। अन्यथा न लें। इस कविता की तीसरी पंक्ति में 'मुसलमानों' शब्द के स्थान पर 'विधर्मियों', चौथी पंक्ति में 'रामराज' के स्थान पर 'धर्मराज'और छठी पंक्ति में 'इंदौर' के स्थान पर 'मेरे शहर' विस्थापित कर दें। यह एक वैश्विक कविता हो जाएगी।
दिनेश भाई,
आपके सुझाव अच्छे हैं. इन पर अमल कर रहा हूं.
धन्यवाद.
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